बाबूराम प्रधान
शांत समुद्र को
हिलाने जा रहा
दरिया खुद को
मिटाने जा रहा
धरती
ने कहीं टेर लगाई है
बादल
पानी पिलाने जा रहा
मर्ज
उसका है दिल का पुराना
देखो कहाँ नब्ज दिखाने जा रहा
जिसको सलूक का सलीका नहीं
सदर
से हाथ मिलाने जा रहा
जो बेचता रहा
जमीं नजूल की सरकारी
हकूकों को हक़ दिलाने
जा रहा
समाज में जो विष
फैलाता रहा
बज्म
को अमृत पिलाने जा रहा
वक्त
बड़ा बलवान है साहिब
बेअक्ल अदब
सिखाने जा रहा
-0-
सम्पादिका डॉ कविता भट्ट जी को प्रकाशन के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता।हार्दिक बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका अपने रचना को पढा
हटाएंधन्यवाद
बहुत उम्दा रचना...एकदम सटीक सत्य को उजागर किया है अंतिम पंक्तियों में
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई
बहुत बहुत धन्यवाद प्रियंका गुप्ता जी आपका आपने रचना पढ़कर अपनी राय दी
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन!
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय।
हार्दिक आभार ज्योत्स्ना प्रदीप जी उत्साहवर्धन के लिए
हटाएं