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गुरुवार, 9 सितंबर 2021

273-हिमालय -दिवस

 


नमन तुम्हें हे, शृंग हिमालय

विजय प्रकाश रतूड़ी


नमन तुम्हें हे, शृंग हिमालय। 

हर हर शिव के तुम नृत्यालय। 

पर्वत राज हे, देवालय। 

जीवन दाता सत्य शिवालय। 

नमन--

धवलेश्वर हिमाच्छादित। 

धवल मणि से सदा जडित। 

जननी के मस्तक पर सज्जित। 

गिरि राज संज्ञा परिभाषित। 

प्रातः संध्या के अरुणालय। 

नमन--

जननी गंगा जीवन दाता। 

निकसे तुमसे यमुना माता। 

पावन तोय प्रवाहित जिसमें। 

जो अमृत के सम कहलाता। 

भारत मां के तुम रक्षालय। 

नमन - - 

आज्ञा तेरी माने सरिता। 

जिसका वारि अविरल बहता। 

खेत को पानी प्यासे को जल। 

और उदधि का पेट है भरता। 

तुम जलदों के शीतालय। 

नमन - - 

अविचल हो तुम सदा अडिग हो। 

औषधि में तुम संजीवन हो।। 

अंबर से संवाद तुम्हारा। 

प्रतीक सत्य के सदा धवल हो। 

ऋषि मुनियों के तुम शरणालय। 


नमन तुम्हें हे, शृंग हिमालय।।

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