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रविवार, 13 जून 2021

248-पहाड़ी पर चन्दा

 


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कठिन और ज़िम्मेदारी वाला काम होता है पद्य रचना का सटीक और सुंदर अनुवाद करना । हाइकु जैसी नियमबद्ध विधा में इन हाइकु का इतना अच्छा अनुवाद करने के लिए सबसे पहले कविता जी को बधाई और इस संग्रह की सार्थक और गहन जानकारी से भरी इस समीक्षा के लिए आदरणीय काम्बोज जी को भी बहुत बधाई ।

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  2. 5 देशों के 43 हाइकुकारों के 468 हाइकु का संकलन ही नहीं वरन उनका पहाड़ी भाषा में बहुत ही सुंदर एवं सटीक अनुवाद डॉ कविता की दक्षता, लगन एवं समर्पण का परिचायक है। समीक्षा में उद्धृत हाइकु और उनका पहाड़ी अनुवाद इस संकलन की श्रेष्ठता का प्रमाण हैं।
    आदरणीय रामेश्वर काम्बोज जी की समीक्षा भी बहुत ही उत्कृष्ट है, संकलन को पढ़ने के लिए मन को अभिप्रेरित करती है साथ ही अनुवाद कला के पहलुओं से भी पाठकों को परिचित करवाती है।
    कवयित्री एवं समीक्षक महोदय को साधुवाद।

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  3. कविता जी की लेखनी से अनूदित हिंदी हाइकु पहाड़ी बोली में भी अपनी मौलिक छाप छोड़ने में सक्षम रही है । काम्बोज जी की समीक्षा ने संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं । मन में यही भाव आता है - के भली रात, तारों संग भेटूण, कांठा माँ जून ।
    सुंदर रचना और सार्थक समीक्षा के लिए कविता जी और काम्बोज जी को बधाई ।

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  4. मूल हाइकु के भाव व आत्मा सजीव रूप में चित्रित करती आपकी अनुवाद करने की शैली वास्तव में प्रशंसनीय है। इस सफल प्रयास के लिए कविता जी हार्दिक बधाई। संग्रह की गहन भावपूर्ण समीक्षा के लिए आदरणीय काम्बोज जी को बहुत -बहुत बधाई।

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  5. हाइकु के इतने अलग अलग भाव-चित्रण का सटीक अनुवाद करना, नि:संदेह बहुत मेहनत और कुशलता का कार्य है जिसे कविता जी ने बहुत खूबसूरती से किया है। हार्दिक बधाई कविता जी को।
    इस पुस्तक की समीक्षा काम्बोज भाई ही कर सकते हैं। पहाड़ी बोली में हिन्दी हाइकु का अनुवाद उत्कृष्ट हुआ है, यह सनीक्षा से पता चलता है। काम्बोज भाई को सार्थक समीक्षा के लिए बहुत बधाई। अब पुस्तक के हाथ में आने का बेसब्री से इंतज़ार है।

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