भगत सिंह राणा 'हिमाद '
प्राची से पश्चिमांचल तक तेरी
फैली विस्तृत पर्वत माला है
उच्च हिमालय भारत माँ का
उत्तर सीमा का रखवाला है
प्राण दान जन जीवन को देतीं
असंख्य सरिताओं की माला है
नत मस्तक हे नगाधिराज तुम्हें !
जहाँ बद्री औ केदार शिवाला है
चमकता है मुकुट भाल तेरा
शिखरों पर जो हिम की वलया
गंगा यमुना अलका सरस्वती
कण्ठसुरसरि कल-कल सलया
पुण्य धरा पर पूजित वेदों में
औषधियों का भण्डारण करता
हिम जल से सिंचित यह धरती
हिन्द महोदधि भी जल भरता
पुण्य सरोवर तुझमें ही बसते
घने अरण्य देवदारु के पलते हैं
तेरे ही मनोरम घाटियों में
फल फूल मनोहर फलते हैं
शिव पारवती करते हिम क्रीड़ा
कैलाश मानसर जग शान है
हे गिरी राज ! तेरे ही कारण
भारत की जगत में पहचान है
-0-
शानदार।
जवाब देंहटाएंवन्देमातरम!
अद्भुत
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप सभी विद्वत जनों का हार्दिक ासभासर
जवाब देंहटाएंअति खूबसूरत श्रेष्ठ सृजन को नमन🙏
जवाब देंहटाएंप्रकृति सौंदर्य का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंआप सभी आदरणीय जनों का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हिमालय दर्शन 💐🙏
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रचना हिमालय पर।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी रचना के लिए बहुत बधाई
जवाब देंहटाएं