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189-मद धूल में मिल जाएगा
1-मद धूल में मिल जाएगा
डॉ .कविता
भट्ट ‘शैलपुत्री’
कुकुरमुत्ते दे रहे- चुनौतियाँ आसमान को;
कूप-मंडूकों का नर्तन, टर्र-टर्र
अभिमान वो।
बरसात है- सावन न समझो।
सागर की औकात क्या, मौसमी नाले कहें।
तोड़के तटबंध सारे, अराजक होकर
बहें।
बरसात है- सावन न समझो।
अँधेरों को है उदासी, जुगनुओं के पुंज
यों।
इनमें भी तो आग है, है वो सूरज
गर्म क्यों?
बरसात है- सावन न समझो।
मौसमी घासें करें कुश्ती- फसल से रात-दिन।
झाड़ियों के शीश भी उन्नत हैं- मर्यादा के बिन।
बरसात है- सावन न समझो।
मद धूल में मिल जाएगा- जब ये
मौसम जाएगा।
चार दिन की है अकड़- कैसे आनन्दगान गाएगा?
बरसात है- सावन न समझो।
रिमझिम के प्यार- सा, कुछ तो सावन जी ही लें।
प्रेयसी के मनुहार- सा, भिगोएँ- भीग खुद भी लें।
बरसात को सावन ही समझो।
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2-मुक्तक- डॉ
.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
बाँटनी है तुझसे सर्द रातों की ठिठुरन,
ज़िंदगी तू आना गर्म कम्बल लेकर।
जाने क्यों मुझे टाट के पैबन्द
प्यारे हैं,
क्या करूँगी सपनों का मखमल लेकर?
-0-
3-मुक्तक-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत मिलेंगे पथ में हमको,
ढोल बजाकर गाने वाले ।
बहुत मिलेंगे विषधर बनकर,
जब चाहे डँस जाने वाले ।
हमको रोज हलाहल पीना
फिर भी हमको जीना होगा,
शिव- शिवा के हम तो वंशज,
कभी न शोक मनाने वाले ।
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