प्रो .संजय अवस्थी,
मेरी माँ, जिन्हें हम अम्मा कहते थे,
बीच से निकली माँग पर, शोभता सिंदूर।
माथे पर बड़ी लाल बिंदी, सर पर पल्लू,
मन मोहती, बिना फाल की साड़ी।
माहुर रँगे पाँव में, सुंदर लगती खटारा स्लीपर,
गले में चैन , कानों में स्वर्ण फूल, न शृंगार,
न कोई अदा, बस सादगी का शृंगार,
सबसे सुंदर, कितनी सुंदर थीं अम्मा,
यदि कुछ तुम-सा हो जाता, मैं,
देवत्व न सही, संन्यासी सा सुंदर होता मैं।
दूर कहीं दिखती तुम,
हाथों में गृहस्थी के भार के थैले,
मैं दौड़ता, नन्हे पाँवों से,
बोझ से बोझिल तुम, फिर भी
मुझे पा मुस्कुराती।
पर काम बाकी है,
श्यामा को चारा दे,
थैले की गृहस्थी सहेजती।
कभी न थकती तुम,
काश में तुम-सा दशांश भी कर पाता,
तो कर्मवीर कहलाता।
चुन- चुनकर फूलों से सजाती, कन्हाई को,
रोज नए भोग चढ़ाती, हरि को,
सबसे जुदा, आँखें बंद,
कितनी माला लेती , प्रभु नाम।
इस भक्ति का एक अंश भी पाता,
तो मैं मुमुक्षु बन जाता।
अम्मा,
आज भी यादों में है,
तुम्हारा मधुर स्वर में गाना।
बातों -बातों में मध्यम से,
तार सप्तक में जाना।
आहत से अनाहत जगाना।
काश मैं मध्यम का पंचम ही पा जाता,
तो मैं भी गायक बन जाता।
कल ही की तो बात है,
तुम कह रही थी कहानी,
बालों में उँगलियाँ, फेरती हुए।
मेरे होश गुम, शायद नींद आने लगी अम्मा,
मुस्कुराकर बोलीं, बस, बाकी कल।
पर सुबह, आँखें बंद, मुस्कुराहट वही।
बार -बार बुलाने
पर, नहीं बोलती अम्मा।
काश, उस रात की मुस्कुराहट का अर्थ जानता,
तो मैं भी अपनी यादों को अमर कर जाता।
प्रो. संजय अवस्थी क रचना पढकर मेरी आँखें नम हो गयीं | अम्मा को पढकर मुझे अपनी माँ की याद आ गयी | ममत्व से भरी हृदय को स्पर्श करने वाली विशेषांक के लिए अति उत्तम |श्याम हिंदी चेतना
जवाब देंहटाएंह्रदय से आभार💐
हटाएंबेहद भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर।
आभार रश्मि जी💐
हटाएंभाव पूर्ण रचना । माँ की स्मृतियाँ उभर कर सजीव हो गयीं । बधाई आपको ।
जवाब देंहटाएंह्रदय से आभार💐
हटाएंबेहद मार्मिक रचना. संजय जी को बधाई व शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंआभार ह्रदय से जेनी जी💐
हटाएंअति सुन्दर और भावपूर्ण सृजन... आँखें नम हो गई... सादर नमन आपकी माताजी को और आपकी भावपूर्ण स्मृतियों को !
जवाब देंहटाएंह्रदय से आभार ज्योत्सना जी💐
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय बाबूराम जी💐
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