बाबूराम
प्रधान
देखकर तुम्हें अर्श में जो देखूँ
शबे नूर हो तुम महजबीन हो
तुम कितनी हसीन हो
तबीयत संग डोलें हमारी
निग़ाहें
इस दिल को करना पड़ता है काबू
मारें हिलोरें दिल की
जो चाहें
लचकती हो डाली फूलों
की जैसे
खुदा का हो तोहफा अर्शे परवीन हो
तुम कितनी हसीन हो
खुशबू तुम्हारी महकती सबा है
बेदवा
मर्ज की भी तू ही दवा है
मुस्कुरा
के जो देखे दिल पे असर हो
मरते
मरते बचा ले तू ऐसी हवा है
समझके
फूल लबों पे बैठ जाएं भँवरे
लगती
हो ऐसे जैसे सहरा में नस्रीन हो
तुम कितनी हसीन हो
एक झलक जो देखे हो जाए दीवाना
रुखसार वासिफ कोई चश्मे दीवाना
तुझको जो देखे वो ढूँढे
लकीरों में
उठ जाऐं जो नजरें मुस्कुराए
दीवाना
पाने तुम्हीं को वो इबादत
में लगे हैँ
रोजे का तप ईद सी ताजातरीन
हो
तुम कितनी हसीन हो
दिल में हो हलचल यूँ इतराके चलना
हवाओं में ये आँचल उड़ाके चलना
छाए घटा काली गेसू झटकाके चलना
शाख ए गुल को हिला हिलाक़े चलना
जो भी देखे तुम्हें वो रुक जाए राह में
हुस्न के नशे में कितनी तल्लीन हो
तुम कितनी हसीन हो
महजबीन - चन्द्रमा के
समान ,शबे नूर - रात की चांदनी ,अर्श
- नभ , अर्शे परवीन - कृति का नक्षत्र,
सहरा - रेगिस्तान /जंगल , नसरीन
- सफेद गुलाब , रुखसार वासिफ - कपोल
प्रशंसक , चश्मे दीवाना - चक्षु प्रेमी ,
इबादत - पूजा , शाख ए गुल -
फूलों की डाली ,
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बाबूराम प्रधान
नवयुग कॉलोनी , दिल्ली रोड,
बड़ौत - 250611
जिला - बागपत , उत्तर प्रदेश
बहुत बेहतरीन गीत
जवाब देंहटाएं-प्रतीक चंचल
बहुत बेहतरीन गीत
जवाब देंहटाएं-प्रतीक चंचल
हार्दिक आभार प्रतीक चंचल जी आपका
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