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शुक्रवार, 17 मई 2019

दो कविताएँ

ज्योति नामदेव
 1-फिर याद आई

आँखें छलकने पर, एक गुमसुम कहानी याद आई
आज फिर एकयाद कोई चोट पुरानी आई
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भीख  माँगते, नंगे बदन में उस बच्चे ने पुकारा
अंदर तक चीरती, एक खुददारी याद आई
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क्यों हम इन नन्ही कलियों को पहले ही मुरझा देते है
शायद उनके भी होंठो पर, मुस्कान बनकर जिंदगानी आई
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ऐ रब्बा अगर कुछ कर सकता है तो कर इतना
सड़क पर कोई फूल भीख ना माँगे,अरज दीवानी लाई
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आँखे छलकने पर, एक गुमसुम कहानी याद आई
आज फिर एक याद, कोई चोट पुरानी याद आई
-0-
2-चाँद -सा मुखड़ा

क्या परिभाषा हो सकती है,
चाँद -से मुखड़े की,
वो जो वासना की ओर
धकेलता है
या फिर वो
जो वासना से पार ले जाता है,

विश्व के सारे प्रेमी
सुन्दर तन, सुन्दर सूरत
को कहते है
चाँद- सा मुखड़ा
लेकिन मै सहमत नहीं
इस उपमा से

चाँद -सा मुखड़ा बनने
के लिए त्यागना
पड़ता है अपना सर्वस्व
जीवन -धारा

तब जाकर बनती है, सीता
तब जाकर बनती है, अहल्या
तब जाकर बनती है, तुलसी
तब जाकर बनती है, गीता

नामों में क्या रखा है जनाब
अपनी कस्तूरी को खोजिए
और आप भी बन जाइए
चाँद -सा मुखड़ा
किसी जिंदगी का टुकड़ा
-0-



1 टिप्पणी:

  1. पहली रचना में मार्मिकता के साथ कवि ने अपेक्षा की है कि कोई बालक भिक्षुक न बने दूसरी रचना प्रेम को समर्पित है कि उसे कैसे प्राप्त हों दोनों सुंदर रचनाएँ बधाई

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