डॉ.कविता भट्ट
बादलों पर नित पग धरूँ
गगनपथ पर मैं डग भरूँ
यदि
तुम रहो प्रिय! साथ में
चाँद का दर्पण निहारूँ
तप्त तन को मैं सँवारूँ
यदि
तुम रहो प्रिय! साथ में
प्रकृति- सी उन्मुक्त नाचूँ
बासन्ती पृष्ठों को बाँचूँ
यदि
तुम रहो प्रिय! साथ में
प्रश्नपत्र यह जीवन का
लिख दूँगी उत्तर मन का
यदि
तुम रहो प्रिय! साथ में
-0-
बहुत भावपूर्ण गीत । प्रत्येक पंक्ति सुमधुर भावों से पगी हुई।
जवाब देंहटाएंतप्त तन को मैं सँवारूँ में भाव की गहनता के साथ व्यापकता भी है। तन के लिए 'तप्त' का अर्थ बहुआयामी है। यदि तन में ऊष्मा नहीं रहेगी, तो सँवारने के लिए कुछ नहीं बचेगा।
1
वह तन जो कठोर श्रम के कारण तप्त रहा, कष्ट झेलता रहा, थककर चूर चूर होता रहा। उसको सँवारने की लालसा तमाम कष्ट झेलकर भी बची हुई है। यह जीवन की आशावादिता है।
2
तप्त तन यानी अनेक कामनाओं को जगाए हुए, प्रेम की आँच को विषम क्षणों में भी बचाए हुए है। यह तन ही है जो सारी कामनाओं का केन्द्र है। तन नहीं होगा या सजग नहीं होगा, तो यह खुद में किसी भाव संवेदना को आश्रय नहीं दे सकेगा। उसको सँवारने की आकांक्षा ही जीवन है।
*
हार्दिक बधाई के साथ
काम्बोज
कविता जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी कविता यदि रहो तुम साथ प्रिय ,
बहुत कुछ कह देती है | मुझे आपकी कविता पढकर अंग्रेज़ी कवि राबर्ट बारुनी जी एक पंक्ति याद आ गयी "If Earth being Heaven,what would be Heaven for" यदि जीवन में सब कुछ ही मिल जाता , तो जीवन एक स्वर्ग बन जाता || आपकी कविता में एक और कविता बंद है | शुभ कामानाओंएँ सहित -श्याम हिन्दी चेतना
हृदयस्पर्शी रचना.... और गुरुवर की टिप्पणी के रूप में रचना की व्याख्या अद्दभूत...
जवाब देंहटाएंव्याख्या करते हुए पृष्ठ भरे जा सकते हैं....बहुत ही गहरे अर्थ लिए हुए है यह रचना - ‘यदि तुम रहो प्रिय! साथ में’
हृदयतल से बधाइयाँ
आप सभी स्नेहीजन को हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है...| आदरणीय काम्बोज जी की इतनी गहन और सार्थक टिप्पणी के बाद कुछ कहने को शेष नहीं रहा | बस मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें...|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना जीवन के विभिन्न आयामों की तृप्ति की आशा लिए अपने इष्ट के साथ रहने की अपेक्षा करते हुए जीवन को सुंदरता के साथ जीने की कामना हार्दिक बधाई
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