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सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

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सदा मेरे पास
पूनम सैनी

सुना है लोगों से,
जो नहीं होते ,
वे भी होते है इस जहान में;
दूर टिमटिमाते तारे के रूप में।
देखते है हमें वहीं से ,
दूर से मुस्कुराते हुए।
तो आप किस तारे में छिपे है?
किस ओर खोजूँ मैं आपको?
क्या देखते हो आप मुझे भी वहाँ से?
गर आप भी हो उस आसमान में,
तो चमको ना मेरी आँखों आगे!
कह दो ना यहीं हूँ मैं,
पास तुम्हारे।
देखो ना पापा ,ये सावन ,
ये घटाएँ, ये बिजली
क्यों चले आते है?
कहो ना मेघों को
ना बरसें  कभी।
कह दो हवा से
बहाले ये इन घटाओं को।
चाँद भी तो नहीं बिखेरता
सदैव यूँ ही रोशनी।
तो कैसे देखूँ मैं आपको7
इन असमर्थ आँखों से।
सच कहूँ!
ये हवाएँ भी अहसास कराती है मुझे,
आपके होने का।
छू लेते हो अपने आशीष भरे हाथों से
मेरे सर को।
उस रात जब जन्मदिन था मेरा,
और कड़की थी बिजली रात के सन्नाटों में,
कहो-
तुम ही थे ना पापा।
जानती हूँ ,
यही हो साथ अपनी बिटिया के,
आस-पास हमेशा...

-०-


14 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी गहराई से दिल को छू आँखे नम कर दी इन मार्मिक पंक्तियों ने...। अपने हमसे दूर होकर भी दूर कहाँ होते हैं, वो हमेशा हमारे आसपास ही रहते हैं...हमारे साथ...।
    बहुत बधाई इतने सहज-सशक्त लेखन के लिए...।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया।सही कहा आपने।अपने हमेशा साथ ही होते है चाहे जितना दूर हो जाये।

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  2. ह्रदय स्पर्श ..बहुत सुंदर जी

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  3. प्रिय पूनम बेटी आपकी कविता हृदय को स्पर्श कर गई !!

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    1. धन्यवाद गुरु जी।आप ही का दिया ज्ञान है जो थोड़ा बहुत लिख पा रही हूँ।🙏

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  4. बहुत सुन्दर रचना, पूनम बहुत अच्छी, लिखती रहो

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