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शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

रिश्ते

प्रो0 इन्दु पांडेय खण्डूड़ी

रोजमर्रा की आपाधापी
रिश्तों के गुणाभाग,
भावों के जोड़ घटाव
अद्भुत से घटते संयोग ।
लगाव के नाम पर,
अलगाव के भूभाग,
प्रेम की आस में,
खंडित विश्वास ।
मधुर संगीत की धुन
मुस्कराहट ओढ़े,
मशीन बन चुके
अपने ही तर्क बुने।
अंतर्मन के उलझे,
अनमने जज्बात
जीने के लिये कुछ,
जरूरी सी बात ।
टूटती हुई गिरती
सहारे की दीवारें
बेचैनी की बारिश
सुकून खोजती निगाहें।
उथल पुथल से,
सराबोर, ये पल
अनजान, अनिश्चित
अनवरत से छल ।
फिर भी हम और तुम
व्यस्तता से भरे,
राह खोजते रहे
कुछ मुस्कराहट के पल।

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