सॉनेट/ अनिमा
दास
1.स्त्री का स्वर (सॉनेट)
मौनता की भाषा यदि
होती..मृदुल -सहज व सरल
द्रुमदल न होते
अभिशप्त..आ:! न होता अंत वन का
न स्रोतवती होती शुष्क,न मेघों में होता अम्लीय जल
न होता अज्ञात अभ्र में
लुप्त एक पक्षी.. मृत मन का।
न होती यक्ष-पृच्छा..न
मिथ्या विवाद की धूमित ध्वनि
न कोई करता अनुसरण सदा
अस्तमित सूर्य का कभी
न पूर्व न पश्चिम न
उदीची से.. प्रत्ययी पवन की अवनि
न होती
नैराश्य-बद्ध..निगीर्ण ग्लानि में रहते यूँ..सभी।
यह जन्म उसी प्राचीन
इतिहास का है एक भग्नावशेष
निरुत्तर
निर्मात्री..पुरुष-इच्छा की स्त्री.. मौन-मध्याह्न
स्वर में नीरव
अध्वर..शून्य भुजाओं में अंतिम आश्लेष
प्रतिक्षण ध्वस्त होते
इसके कण-कण,हैं अर्ध अपराह्न।
यदि हुई अभिषिक्त यह
उर्वि..यदि हुआ नादित अंभोधर
प्रतिगुंजित होगा
अंतरिक्ष में तब अविजित स्त्री का स्वर।
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2. प्रेम पर्व (सॉनेट -30)
मंदर पर सप्तरंग का आँचल,सखी,आओ उत्सव गीत गाओ
मदमत्त भ्रमर करे पुष्प
संग प्रीत..कृष्ण रास संग रच जाओ
मुग्ध मन नृत्य करता..
है स्निग्ध किरणों में सम्पूर्णतः तन्मय
रूप यौवन का हो रहा
तीर्ण...गमक रहा... कर रहा अनुनय।
प्रेम हो रहा व्यक्त सखी
कि रक्तिम हुआ आह!प्राच्य आकाश
स्वप्नगुच्छ हुआ
स्फुटित..शतदल के सरोवर में आया प्रभास
पीत रंग ने किया
स्पर्श.. मुखमंडल हुआ स्वर्ण सा अरुणित
मंद-मंद स्वर में कहा
प्रेम ने 'सुनो प्रिया तुममें मैं हूँ
प्लावित।'
इस नगर में नहीं रहा
जीवन यदि... स्वर्गीय -संभव- सरल
यदि वसंतकुंज में भी...
समस्त पीड़ाएँ रहीं. सदैव जलाहल
कोई प्रतिवाद नहीं
होगा..न होगा मृदु वेणु-ध्वन. न वंशीवट
दृगोपांत में
अश्रुमिश्रित परागरेणु से सिक्त होगा कालिंदी तट।
प्रेम पर्व की वर्तिका
हो रही प्रज्वलित.. जीवन हुआ फाल्गुन
मन के कोण-अनुकोण में
गूँज रही गीतप्रिया की..मधुर धुन।
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बेहतरीन रचनाएं
जवाब देंहटाएंसादर
सुगठित बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंवास्तव में संगीतमय काव्यात्मक शब्द सुन कर मन हुआ प्रसन्न ! अभिनन्दन !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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