डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
बिल्कुल आसान था
नागफनी उगाना
मगर मैं न उगा
सकी।
मेहनत का काम था;
फूल उगाना
मगर क्या करूँ
?
मुझे फूलों से
प्यार इस क़दर था
कि दिल की ज़मीं
सींचने में
मैंने उम्र गुज़ार
दी।
मुस्काते फूलों
को रौंदकर
वे ख़ुद को बागवान
कहते रहे।
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