बुधवार, 27 अप्रैल 2022

349-सूरज झाँकेगा

 

डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

  राख हुआ जज्बा, मगर

          सुलग रही इक चिंगारी।


बोझ खत्म उम्मीदों का

          और साँसें भारी - भारी।

तुम तो रौशन हो ही गए

          काल कोठरी हमें प्यारी।

कौन बाँचता काले कागज

           गाया राग जो दरबारी।

उनके प्यार में खोए हम

           जो घृणा के हितकारी।

संन्यासी बनते भी कैसे

            दूजे के हित ही संस्कारी।

चलो तपस्या बहुत हो चली

            धृतराष्ट्र को थामे गांधारी।

पाण्डव खांडव घूम रहे

            जीवन संघर्ष हुआ संहारी।

इंद्रप्रस्थ भी बन जाएगा।

             यदि इच्छा शक्ति बनवारी

कभी तो सूरज झाँकेगा

             महकेगी तब यह फुलवारी।

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5 टिप्‍पणियां:

  1. संघर्षों से जूझकर आगे बढ़ने की शक्ति को जागृत करने वाली आशावादी कविता। हार्दिक बधाई शैलपुत्री जी

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  2. वाह!
    ...कभी तो सूरज झाँकेगा / महकेगी तब यह फुलवारी।
    बहुत बढ़िया
    बधाई

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  3. इंद्रप्रस्थ भी बन जाएगा
    यदि इच्छा शक्ति बनवारी।

    कभी तो सूरज झाँकेगा
    महकेगी तब यह फुलवारी।

    वाह।

    जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण की प्रदाता 'सूरज झाँकेगा' अत्यंत उत्कृष्ट रचना।

    यथार्थ के दर्शन व आशा के अधिष्ठापन से मन का अभिवर्धन करती इस उत्कृष्ट रचना हेतु आदरणीया दीदी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ 💐🌷🌹

    आपकी लेखनी को नमन 🙏

    सादर प्रणाम

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  4. बहुत सुंदर आशावादी कविता।बधाई आपको।

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  5. अतिसुंदर! आशा का संचार करती कविता! हार्दिक बधाई आ. कविता जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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