गुरुवार, 10 मार्च 2022

336- दो कविताएँ

 मीनू जोशी  (अल्मोड़ाउत्तराखण्ड)

1-सुनो ! कविता कुछ कहती है.....

  


सुनो कविता कुछ कहती है
,

कहती है,

संवेदनहीन अलगाव के बीच,

झूलतीसिसकती आहें।

भावनाओं का उफ़ान रोकती,

हृदय बेधित कराहें।

आपसी मनभेदों के बीच,

अपने वज़ूद को तलाशती,

बहुत दूर निकल आई हूं....

मैं बौद्धिक विलास में नहीं

हृदय की तरलता में हूं।

गौर से सुनो,

शायद यही कहती है।

 

कहती है,

यहां अंतर्द्वंद्व का रेगिस्तान,

स्याह रातों का सूनापन,

दूर तक सिमटी ख़ामोशी।

अनवरत प्रतीक्षा के बीच,

एक उम्मीद की किरण,

कि शब्द- शब्द बुनकर,

बूंद-बूंद नैनों से पिघल कर,

एक लंबी प्रसव पीड़ा के बाद,

कोई धीरे से कहेगा -

सुनोपैदा हुई है

सचमुच एक कविता ।


-0-

 2-घाव

 

युद्ध लड़े जाते हैं,

मिसाइल और टैंकों से,

पर  युद्ध गढ़े जाते हैं,

अहमविद्वेष और आवेगों से।

सत्ता में बैठे लोग,

मशीनी बम होते हैं,

उन्हें फटना होता है,

उन रिहायशी इलाकों पर,

जहां -

पल रही थी अब तक,

प्रेम सौहार्द और सहानुभूति।

फैलाना होता है,

अपने वर्चस्व का धुआं

और साम्राज्यवाद की गंध।

जो क्रूर अट्टहास के साथ।

लील लेता है -

करोड़ों जिंदगियों को एक साथ।

उनके अपनों की,

मिट जाती है जिजीविषा।

रह जाते हैं -

सिर्फ अवशेष,

मृतप्राय आहत मानव,

असीम पीड़ा और

कभी न भरने वाले घाव !

-0-

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट रचना।
    हार्दिक बधाई आदरणीया।

    सादर🙏

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह, मर्मस्पर्शी। उत्कृष्ट सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह शानदार रचनाएं 👌👌👌🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. सत्ता में बैठे लोग,

    मशीनी बम होते हैं,

    उन्हें फटना होता है,

    उन रिहायशी इलाकों पर,

    जहां -

    पल रही थी अब तक,

    प्रेम सौहार्द और सहानुभूति।
    सटीक एवं उत्कृष्ट...
    दोनों रचनाएं बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक हैं
    लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
  6. दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर और प्रभावपूर्ण।

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