शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

304-सुख-साज

डॉ . कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

पक्षियों के पर रँगीले


रेशम के बन्धन सजीले

हरीतिमा डाली निराली

नव किसलय, अमृत प्याली

रोक लेंगे क्या ये सब मुझे?

 

स्वप्नों की बारातें प्यारी

स्मृतियों की सौगातें न्यारी

नीलगिरि की बहती धारा

और भोर का उगता तारा

रोक लेंगे क्या ये सब मुझे?

 

पर्वतों के श्वेत सोते

प्राची मस्तक उषा अरुण होते

अश्रुओं की प्यारी करुणा

और ये सारी मृगतृष्णा

रोक लेंगे क्या ये सब मुझे?

 

अभी-अभी बीते क्षण में

और मृदु मृदाकण में

जगी थी एक स्फूर्ति

सजी थी एक मूर्ति

 

फिर यह आलस्य कैसा

मुझे तो चले जाना है

कहीं दूर… अति दूर…

ये सब असीम भौतिक सुख-साज

रोक लेंगे क्या ये सब मुझे?

(‘आज ये मन’- संग्रह से)

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना।
    हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी को।

    सादर 🙏🏻

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  2. अत्यंत सुंदर भावपूर्ण रचना.... 🌹

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  3. बेहतरीन रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  4. बहुत ही सुंदर रचना
    लेखनी ऊर्जावान
    रहे इसी कामना के साथ
    बधाई

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