मंगलवार, 6 जुलाई 2021

257- केंचुए नाग हो गए

 डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

बिल्ले हुए अब बाघ, केंचुए नाग हो गए

किरपा से राख कोयले भी आग हो गए।


कुएँ खोदकर भी कुछ प्यासे ही खड़े रहे

कुछ पी, धो-नहा कर बाग-बाग हो गए। 


अ से अमरूद, जिन्हें आ से आम ना पता

वे महान ज्ञ से ज्ञानी, बड़े ही भाग हो गए।


वन्दन में मगन रात-दिन वे वसन्त से खिले

निष्ठा हो या लगन, सब पूष-माघ हो गए।


कौवे- काँस्य पा गए, बगुलों ने रजत मढ़ा 

स्वर्ण पदक गिद्धों के भजन-राग हो गए। 


पारी की प्रतीक्षा में, तट पर मौन कुछ खड़े 

कुछ पवित्र हो, गंगा में बुलबुले झाग हो गए।


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14 टिप्‍पणियां:

  1. "कौवे- काँस्य पा गए, बगुलों ने रजत मढ़ा
    स्वर्ण पदक गिद्धों के भजन-राग हो गए। "
    बहुत सशक्त व्यंजना।बधाई

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  2. अति सुंदर, उत्कृष्ट रचना।
    हार्दिक बधाई आदरणीया।

    सादर

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  3. कविताया: कविता गुनिजना-मनोहरा

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 08 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  5. कौवे- काँस्य पा गए, बगुलों ने रजत मढ़ा
    स्वर्ण पदक गिद्धों के भजन-राग हो गए।
    क्या बात कही कविता जी 👌👌👌🙏🙏

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