शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

188_दो कविताएँ

प्रो .संजय अवस्थी,

1-दु:ख

क्या तुमने दु:ख को समझा है?

दर्द की भाषा को समझा है?

दर्द के अनुत्तरित कई प्रश्न,

सुख बिना गाँठ बस प्रश्नहीन।

सुख, कुछ सुरों का अपूर्ण राग।

दु:ख, सप्तसुरों का पूर्ण राग।

सुख छलिया, कुछ पल का साथी,

दु:ख, अभिन्न मित्र, पल पल का साथी।

सुख,सौंदर्य, सप्तरंगों से मस्त अभिभूत,

गगन में दामिनी सा चमकता, फिर मृत।

दु:ख, धूसर, फिर भी बहुरूप।

दु:ख बदरंग, छोड़ता, अमिट छाप।

सुख,प्रेम- मिलन, फिर भी अतृप्त।

दु:ख, विरह बदरंग, फिर भी प्रेम तृप्त।

सुख-भुलाता, इष्ट से दूर कराता।

दु:ख-परीक्षा,प्रभु के निकट लाता।

जो हमने समझा होता दुख,

तो अधूरा नहीं छोड़ता सुख।

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2-तुम्हारे प्रश्न


दुनिया ने मुझसे पूछा,

समांतर राहें, कभी मिलती हैं?

मैंने दृढ़ होकर कहा, मिलती हैं।

फिर पूछा, कहाँ मिलती हैं?

मैंने फिर कहा, मिलती हैं,

क्षितिज पर दूर दिख रहा है।

और आँखें अनन्त में खो गईं।

हँसकर पूछा, पहुँच पाओगे?

मैंने कहा, हाँ, विश्वास है।

वहां तक मेरी साँसें रहेंगी।

कुटिल मुस्कुराहट ने फिर पूछा,

राह है, पर हमराही कहाँ?

तुम तो अकेले ही हो?

केवल सूनी समांतर सड़क,

तुम अकेले राही, कैसा भ्रम

क्या तपती सड़क पर जल भ्रम?

क्या प्यास, मृगतृष्णा से बुझेगी?

प्रश्न पर प्रश्न, अनगिनत प्रश्न।

प्रश्न -भ्रम, पीछे मुड़कर देखा,

पदचिह्न तो थे, कुछ मिटे कुछ गुम,

उसके ही होंगे, वक्त की आँधी ने,

कुछ मिटा कुछ धूल में मिला दिए होंगे।

सामने स्वर्ण क्षितिज, बाहें फैलाए,

मेरी आवारगी, साँसों को सँभाले।

तुम तो प्रश्न पूछते रहे, हँसते रहे,

मैं दीवाना चलता ही रहा,

साँसों के थकने तक।

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14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। बहुत बधाई।

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  2. हृदय स्पर्शी मधुर कविताओं के लिए हार्दिक बधाई | शब्दों में भावुकता है और जीवन की गहराई |श्याम -हिन्दी चेतना

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  3. दोनों ही कविताएँ बहुत ही मर्मस्पर्शी
    संजय जी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें

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  4. दिल के छूती कविताएँ। आप दोनों को हार्दिक बधाई

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  5. बहुत ख़ूबसूरत रचनाएँ,हार्दिक बधाई संजय जी!

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  6. आभार ह्रदय से ज्योत्स्ना जी

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  7. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई संजय जी.

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