रविवार, 21 अप्रैल 2019

हे प्रिया ! मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ



डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’

हे प्रिया ! मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ 

दूर पहाड़ी नदी के एक तट पर,
सर्दी में तुम्हेंबाहों में भर कर,
वासना से रहित प्रेम आलिंगन,
ध्वनित हों प्रेम के अनहद गुंजन ।
हे प्रिया ! मैं पावन गीत गाना चाहता हूँ 
उँगलियाँ जो फेरूँतो अवसाद भागे,
होंठ माथे धरूँ तोतो उन्माद जागे,
तुम्हारे मन की पीड़ा को सुनकर,
आँखों से बातों के धागों को बुनकर 
हे प्रिया ! पीड़ा से दूर ले जाना चाहता हूँ

दिन भर सुनहरी धूप गुनगुनाए
सूरज पेड़ों के झुरमुट में डूब जाए
फिर साँझ की चूनर में तुमको लपेटे,
मैं पास रख लूँ गर्म बाँहों में समेटे । 

हे प्रिया ! तुम संग दूर जाना चाहता हूँ ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. dard ki gahari sarita, padhakar man karah uthega.ap isi tarah srijan karati arahen. sahriday

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  2. Bahut gahan prem or dard ki abhivykti se bharpur rachna jo bahut kuchh sochne ko majbur karti hai...

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  3. बहुत सुंदर भावों से प्रोत रचना कवि अपनी बात को व्यक्त करने में बड़ी सरलता के साथ सफल डॉ कविता भट्ट जी को सुंदर रचना के लिए बधाई

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  4. बहुत सुंदर वाह प्रकृति का क्या सुंदर चित्रण किया है

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  5. सुन्दर रचना के लिए हृदय से बधाई कविता जी !

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  6. प्रकृति और प्रेम का सुन्दर चित्रांकन ।हार्दिक बधाई कविता जी।

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  7. कविता जी आपकी कविता में प्रेम का संगीत सुनाई देता है | जिसे पर्वत की पहाड़ियां भी सुन सकती हैं | इस में पीड़ा है ;दर्द है और एक देवी सहानुभूति है | अत्यंत मार्मिक भावों से सरावोर है | सुभकामनाओं सहित- श्याम -हिन्दी चेतना

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  8. आप सभी स्नेहीजन को हार्दिक आभार

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