बुधवार, 3 अप्रैल 2019

कली चटकी



बाबूराम प्रधान

चमन में  कली  चटकी   है,  बहुत  शर्माती  हुई
सहर से  सबा  चली है  खुशबू  बिखराती  हुई

निखर  आती  है  रग -रग जब आता है  शबाब
चाल भी ख़ुद ब खुद हो जाती  है  मदमाती हुई

मयखाने में आया है साकी का  दीवाना कोई
साकी नाज से लेके चली प्याली छलकाती हुई

उन्होंने दुपट्टे को बना लिया है  परचम अपना
शान से चल  रही हैं  खातून  उसे  लहराती हुई

राह ए मंजिल के निशां कोई  मिटा नहीं सकता
यहीं से गुजरा दीवाना सबा चली गीत गाती हुई
  
सहर-प्रातःशबाब-यौवनमदमाती-मतवालीनाज-नखरे
परचम - ध्वजखातून-महिलासबा-वायु/नाम (संज्ञा)

बाबूराम प्रधान,

नवयुग कॉलोनी , दिल्ली रोड ,बड़ौतजिला - बागपत , उ. प्र.,२५०६११

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