गुरुवार, 28 मार्च 2019

किसी के दिल में रहूँगी

किसी के तो दिल में रहूँगी,
माना कि नज़र में नहीं रहूँगी।

यह न हुआ तो दिमाग में रहूँगी,
मुझे यक़ी है मैं बेघर नहीं रहूँगी। 

चार दिन उदासी के निकल जाएंगे
पता है, उदास मैं उम्र भर नहीं रहूँगी।

उन्हें ज़िद है यह गुलशन सुखाने की, 
मगर मैं तो बहार हूँ, बंजर नहीं रहूँगी।

प्यार, मुहब्बत-इबादत, शब्द तो नहीं, 
ख्यालों में उनके मुख़्तसर नहीं रहूँगी। 

शिकायतें बहुत हैं उन्हें यूँ तो मुझसे, 
कल तड़पेंगे जिस पहर मैं नहीं रहूँगी। 

फक्कड़ हूँ, मुझे याद करेगी दुनिया, 
माना कल इस सफ़र में नहीं रहूँगी।....शैलपुत्री

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद नन्दन राणा जी।

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  2. बहुत सुंदर रचना
    उन्हें जिद है उजाड़ने की गुलशन यह
    मगर मैं तो बहार हूँ बंजर नहीं रहूंगी
    बहुत खूबसूरत लिखा मजबूती के साथ जीवन की जद्दोजहद को परे धकेलते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहने का हौसला लिए हुए बहुत बहुत बधाई

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  3. वजूद की गवाही के लिए सुंदर सुकोमल अभिव्यक्ति बहिन कविता जी दिली बधाई।

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  4. आदरणीया, सुनीता शर्मा दीदी जी हार्दिक आभार।

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  5. कविता जी ,
    तुम कविता का सागर हो ,
    उर्दू हो या हिन्दी ,
    दोनों में करती हो कमाल ,दर्द बांटती हो नज्मों से बे मिसाल |जिन्हें पढकर पढने वाले भी हो जाते हैं बेहाल || अति सुंदर - श्याम हिंदी चेतना

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    1. आदरणीय श्रीमान त्रिपाठी जी आपका हार्दिक आभार एवं नमन आपको

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  6. बहुत सुंदर! हार्दिक बधाई कविता जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  7. बहुत ख़ूबसूरत रचना कविता जी !

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