गुरुवार, 21 मार्च 2019

अब चेतना रमती नहीं


तुम कहाँ से खोज लोगे,
जब मैं स्वयं में ही नहीं।
विश्व के इन आडंबरों में,
अब चेतना रमती नहीं।

लड़खड़ाते हैं पग मेरे,
वश में कुछ है ही नहीं।
सफलता के शिखरों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

विकल्प पंगु अब बुद्धि के,
संकल्प अब हैं ही नहीं।
विचारों के घने बीहड़ों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

प्रेम निष्ठुर हो चुका है, 
प्रेमिका अब है ही नहीं।
भुजपाश और चुम्बनों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

भस्मीभूत तन हो चुका है, 
उद्दीपिका अब है ही नहीं।
बालसुलभ झुनझुनों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

मन विलग हो चुका है,
संवेदना अब है ही नहीं।
मोह के विष-बन्धनों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 



26 टिप्‍पणियां:

  1. कविता बेटी ! मन प्रफुल्लित हो उठा तुम्हारी रचना पहकर | ये शब्द नहीं मोती हैं जो हृदय से निकल पड़ते | ये पुष्पों की पंखुड़ियां हैं जो मंद पवन से बिखर पड़े | होली के अवसर पर बहुत सारी बधाई और शुभकामनाए | श्याम हिन्दी चेतना -कैनेडा |

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    1. आपको सादर नमन, होली की शुभेच्छाएँ। हार्दिक आभार, आशीर्वाद बनाये रखिएगा।

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    2. आपको सादर नमन, होली की शुभेच्छाएँ। हार्दिक आभार, आशीर्वाद बनाये रखिएगा।

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    3. आपको सादर नमन, होली की शुभेच्छाएँ। हार्दिक आभार, आशीर्वाद बनाये रखिएगा।

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  2. सुंदर उद्गार। अत्युत्तम रचना।

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    1. आपको सादर नमन, होली की शुभेच्छाएँ। हार्दिक आभार, आशीर्वाद बनाये रखिएगा।

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    1. आपको सादर नमन, होली की शुभेच्छाएँ। हार्दिक आभार, आशीर्वाद बनाये रखिएगा।

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  4. कविता जी आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं। आपकी रचनाएँ हमेशा नयापन लिए होती हैं ।भावपूर्ण लेखन केलिए आत्मिक बधाई ।

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  5. आपको सादर प्रणाम होली की शुभेच्छाएँ। हार्दिक आभार, आशीर्वाद बनाये रखिएगा।

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  6. Bahut bhavpurn aapki rachna eak eak shabd dil men utrata hua...shubhkamnayen

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    1. डॉ भावना जी हार्दिक धन्यवाद। आपने मेरा उत्साहवर्धन किया।

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  7. काव्य सृजन मे तो चेतना खूब रम गई है। बधाई।

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  8. हार्दिक आभार आदरणीय डॉ सुरेंद्र जी। आपने उत्साहवर्धन किया।

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  9. रचनाकार सांसारिकता के मोहपाश से अलग होकर मनोदशा का दार्शनिकता पहलू प्रस्तुत कर अपने भावों को प्रकट करने में सफल है कालजयी रचना के लिए रचनाकार डॉ कविता बिष्ट जी को बधाई

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  10. डॉ कविता बिष्ट जी की छवि देखकर मुझे कविवर सुमित्रानंदन पंत जी की याद आ जाती है वही केश रंग रूप का सौंदर्य मुखाकृति के वही भाव देखके क्यों ना कह दूं "कहीं तुम वही तो नहीं" आज दिल के भाव बयान कर दिए अच्छे लगें तो धन्यवाद और ना लगें "यारो मुझे माफ़ करना" धन्यवाद

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    1. आपको हार्दिक धन्यवाद इस सारगर्भित टिप्पणी हेतु।
      क्षमा कीजिएगा, मेरे नाम मे भट्ट है, बिष्ट नहीं।

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  11. बहुत ही उम्दा भाव , बहुत सुंदर कविता

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  12. डॉ कविता भट्ट जी के सरनेम में बिष्ट लिखे जाने की त्रुटि के लिए क्षमा करें पाठक पाठन के समय ध्यान रखने का कष्ट करें धन्यवाद

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  13. हार्दिक आभार आदरणीय बाबूराम जी।

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  14. दार्शनिकता को आत्मसात् किये सुन्दर रचनाधर्मिता।

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  15. भावपूर्ण अभिव्यक्ति! हार्दिक बधाई कविता जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  16. आप का बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीया

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