शुक्रवार, 15 मार्च 2019

जब उसने गजल कही


लफ्ज़ लफ्ज सुना गौर से जब  उसने  गजल   कही
अतीत आंखों से होके गुजरा जब उसने गजल कही

उदास थे जो गुंचे चमन में  फिर  उठा  लिया  है  सर
क़ुछ खुशबू के साथ खिल उठे जब उसने गजल कही

ख्वाबों की दुनिया में था  और  नींद  की  आगोश  में
फिर रोम  रोम  जाग  उठा  जब  उसने   गजल  कही

बहकाया  फुसलाया  बहुत   नुकताचीनों    ने    मुझे
उस पर लगे दाग  झूठे  मिले  जब उसने  गजल कही

पत्थर का टुकड़ा  हंस रहा  था   सोने की आगोश में
था उंगलियों  से झलक  रहा  जब  उसने गजल कही

@ बाबूराम प्रधान
नवयुग कॉलोनी, दिल्ली रोड,
बड़ौत ,(बागपत),उ . प्र . २५०६११

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद डॉ कविता भट्ट जी

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  2. बहुत सुन्दर रचना, बाबूराम जी को बधाई.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद डॉ जेन्नी शबनम जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणादायी होगी

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद डॉ सुषमा गुप्ता जी आपका उत्साहवर्धन के लिए

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  4. पत्थर का टुकड़ा हंस रहा था सोने की आगोश में
    क्या यथार्थ परोसा गया है बधाई रचनाकार को नमन कलम को

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