शनिवार, 2 मार्च 2019

बाग का माली

उगते पादप तोड़ने को  
     दुष्ट जन सब ताक बैठे
बाग का माली बेचारा 
      बाग के किस ओर देखे।

बाग के पादपों कि हालत 
      झुलसी कुम्भलाई ये कैसी
रात -दिन माली बेचारा 
       बेचैन मन उदास कल्पना। 

कौन कैसे इस दशा को 
        ठीक करके पथ दिखाये
सोच चिन्ता की लकीरें
        माथे हैं आती हर पल तुम्हारे

राह लगती ये सही है 
        या है दूजी कोई बताये
हर तरफ के कंटकों को
         मैं मिटाऊँ भी तो कैसे। 

शूल को दूर करते -करते 
      रक्तरंजित मन है मेरा
क्यों उपेक्षित है ये दर्पण 
        कोई समझाये बताये। 

एक गुलशन पहले भी तो 
        यूँ ही पाया था कभी
बाग के उन पाइपों को
        तप से सींचा था कभी। 

आज क्यों फिर देव ने 
         दिया मौका वैसा तुझे 
कोई नव उद्देश्य होगा  
         बाग महकाना तुझे। 

खूबसूरत गुलशन कि कल्पन 
            गुनाह मेरा तो ही अच्छा 
बाग कुम्भलाने न दूँगी
           संकल्प शशि इच्छा ये मेरी

शशि कण्डवाल 
अध्यापिका 
कर्णप्रयाग चमोली 
उत्तराखंड 

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