सोमवार, 24 दिसंबर 2018

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डॉ .कविता भट्ट
दिल को खूँटी पर लटका ,
दिमा खूब चला मोहरे।
जीने के लिए मिली थी,  
ज़िन्दग़ी शतरंज बन ग
दिन-रात,कभी शह ,कभी मात,
इस हाथ,कभी उस हाथ।
जिंदादिली को मिली थी,
जी नहीं सकी,रंज बन ग
-0- 



6 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के कटु यथार्थ की अभिव्यक्ति , सरल हृदय वाला व्यक्ति सदा इस तरह के हालात से गुज़रता है। हार्दिक बधाई कविता जी

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  2. साहित्य का यथार्थ दर्पण आपने जो लिखा है अतुलनीय है सादर प्रणाम आपको

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  3. जीवन की सत्यता का प्रदर्शन

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  4. सोचा कभी ना होत रे बन्दे
    जला बुझा खुद जोत रे बन्दे
    क्यों दिल दुखी करे

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