शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

82-माँ


माँ
डॉ.कविता भट्ट

माँ जब मैं तेरे पेट में पल रही थी
मेरे जन्म लेने की खुशी का रास्ता देखती 
तेरी आँखों की प्रतीक्षा और गति
उस उमंग और उत्साह को
यदि लिख पाती 
तो शायद मैं लेखिका बन जाती
पहाड़ के दुरूह
चढ़ाई-उतराई वाले रास्तों पर
घास-लकड़ी-पानी और तमाम बोझ के साथ
ढोती रही तू मुझे अपने गर्भ में
तेरे पैरों में उस समय जो छाले पड़े
उस दर्द को यदि शब्दों में पिरो लेती
तो शायद मैं लेखिका बन जाती
तेज धूप-बारिश-आँधी में भी
तू पहाड़ी सीढ़ीदार खेतों में
दिन-दिन भर झुककर 
धान की रोपाई करती थी
पहाड़ी रास्तों पर चढ़ाई- उतराई को 
नापती तेरी आँखों का दर्द और
उनसे टपकते आँसुओं का हिसाब
यदि मैं कागज पर उकेर पाती
तो शायद मैं लेखिका बन जाती
तेरी जिंदगी सूखती रही
मगर तू हँसती रही
तेरे चेहरे की एक-एक झुर्री पर
एक-एक किताब अगर मैं लिख पाती
तो शायद मैं लेखिका बन जाती
आज मैं हवाई जहाज से उड़कर
करती रहती हूँ देश-विदेश की यात्रा
मेरी पास है सारी सुख-सुविधाएँ
गहने-कपड़े सब कुछ है मेरे पास
मगर तेरे बदन पर नहीं था 
बदलने को फटा-पुराना कपड़ा
थी तो केवल मेहनत और आस
मैं जो भी हूँ तेरे उस संघर्ष से ही हूँ
उस मेहनत और आस का हिसाब
काश! मैं लिख पाती 
तो शायद मैं लेखिका बन जाती ...
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(कवयित्री द्वारा गढवाली से अनुवाद)

-०-
मेरी ‘माँ’ कविता  पर एक माँ की कविता




14 टिप्‍पणियां:

  1. 'माँ' संसार की वह विभूति है , जिसके स्मरण से ही रोम -रोम सिहर उठता है. आपकी यह कविता 'केवल कविता नहीं ; बल्कि संसार की बहुसंख्यक माताओं की संघर्ष -कथा है . इस कथा को संतान भूल जाती है.यह भूलना ,ईश्वर को भूलना है .इस कविता को यदि कोई अपने ह्रदय में उतार ले , तो वह संसार के सारे पापकर्मों से बचा सकता है. इस युग में यदि कोई सर्वाधिक आहत हुआ है ,तो वह है केवल मातृशक्ति.कविता जी आपकी इसा कविता का एक एक शब्द प्राणवान है . ऐसा ही सृजन करती रहिए. इस भोर में आपके लिए और आपके सृजन के लिए अनंत शुभकामनाएँ

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  2. कविता जी की कविताएँ भावों का सागर समेटे रहती हैं,जिसकी तरंगें हृदय का स्पर्श करके रससिक्त कर देती हैं । इस भावप्रवण कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई ।

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  3. कविता आपके माता श्री और पिता श्री ने जो आपको नाम दिया है वह बहुत ही सच है | लीलाम्बरा में आज आपकी "माँ" कविता पढ़ी और मैं उसे पूर्ण रूप पढ़े बिना इतना भावुक हो गया कि पढ़ न सका | कविता के एक -एक शब्द में इतनी मार्मिकता और दर्द है कि मुझे अपना बचपना याद आ गया | मेरी माँ का दर्द और संघर्ष सामने आ गया | मेरा गाँव चारो ओर से तरुओं , और हरे -हरे खेत -खलिहानों से लदा हुआ था | लेकिन जीवन का संघर्ष मेरी माँ के भाग्य में लिखा हुआ था | आप वास्तव में एक प्रकृति की कवयित्री हैं | पर्वतों की राहों ने आपके हृदय में गीत भर दिए हैं | पन्त की वह प्रचलित पंक्ति आप के लिए ही लिखी गयी थी | "वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान " श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना सेवक
    shiamtripathi@gmail.com

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  4. क्या कहूं...? मन जब भर आता है तो भावनाएँ व्यक्त करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं...| बेहद मर्मस्पर्शी कविता है ये...| बस ह्रदय से बधाई भेज रही, स्वीकार करें...|

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  5. माँ को लेकर लिखी गई अनेक रचनाएँ में यह रचना एक अलग ही अनुभूति को लिए हुए है | माँ के दुरूह पहाड़ी जीवन की बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति वो भी उसके भ्रूण में पल रही नन्ही चिरैया की ज़ुबानी...... कविता जी बहुत ही सुन्दर कविता...
    कुछ दिवस पूर्व यह कविता फेसबुक पर गढ़वाली में सुनी थी लेकिन अर्थ ग्रहण नहीं कर पा रहे थे, अच्छा हुआ आपने इसे हिन्दी में प्रस्तुत किया |
    हार्दिक अभिनंदन |

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  6. बहुत मार्मिक
    बेहद सुंदर , दिल छूती रचना

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  7. माँ की संघर्ष गाथा,
    माँ की मार्मिक व्यथा,
    पहाड़ की अधिकांश
    माताओं की कथा।

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  8. माँ दुनिया की सबसे खूबसूरत कृति होती है ।
    जिस पर सच मे कुछ भी लिखा जाए कम ही है। ईश्वर की प्रतिरूप होती है माँ ।
    बहुत ही बेहतरीन सृजन हेतु हार्दिक बधाई कविता जी

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  9. माँ पर एक बेहतरीन हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति👌👌बधाई ।

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  10. Maa par aapki rachna padhkar sachmuch dil bhar aaya,bahut marmik rachna hai meri bahut bahut shubhkamnaye aaoke srajan ke liye.yun hi likhte rahiye...or marg men aage badhte rahiye.

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  11. आप सभी का हार्दिक आभार, सादर नमन

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  12. माँ के लिए जितना भी लिखो कम है।पर यहाँ थोड़ी सी पंक्तियों ने माँ के प्रति भावों को कई गुना बढ़ा दिया है।बहुत ही सुंदर रचना है।जितनी प्रशंसा करें कम ही है।

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