मंगलवार, 21 अगस्त 2018

शृंखला-69


1
जब भी रोया
विकल मन मेरा
तुमको पाया।
2
निर्मल बहे
पहाड़ी झरने -सा
प्रेम तुम्हारा।
3
नेह तुम्हारा
सर्दी की धूप जैसा
उँगली फेरे।
4
गूँज रही है
मन-नीरव घाटी
प्रेम-बाँसुरी।
5
प्रेम-अगन
अनोखे आलिंगन
बर्फीली सर्दी।
-0-
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1 टिप्पणी:

  1. जब भी रोया
    विकल मन मेरा
    तुमको पाया।( प्रिय को व्याकुलता में ही पाया जा सकता ; क्योंकि व्याकुलता ही वह सोपान है , जो द्वैत भाव को समाप्त करके अद्वैत की और ले जाता है ) 5
    प्रेम-अगन
    अनोखे आलिंगन
    बर्फीली सर्दी। ( जहाँ सम्बन्ध जड़ हो जाएँ, वहा प्रेमपूरित आलिंगन का प्रभाव कम से कम शब्दों में अभिव्यक्त कर दिया गया . प्रेमाग्नि यानी सम्बन्धों की गर्माहट के लिए उसकी उपस्थिति सदा -सर्वदा कामी है )

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