शुक्रवार, 23 मार्च 2018

प्रेम-संगीत



डॉ.कविता भट्ट, 
1-मुक्तक
गहन हुआ अँधियार
प्रियतम मन के द्वार ।
धरो प्रेम का दीप
कर दो कुछ उपकार ।


2
नीरव मन के  द्वार 
अँसुवन की है धार।
छू  प्रेम की वीणा
झंकृत कर दो तार ॥



3-दोहा

छोटी- छोटी बात पर,
मत करना तुम रार ।
मेरे जीवन का सभी
तुम पर ही अब भार।


4-दोहा

माटी-सी इस देह के
तुम हो प्राणाधार ।
तुम्हीं आत्मा हो प्रिये !
मैं तो बस संचार ॥



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[चित्र -गूग्ल से साभार ]


10 टिप्‍पणियां:

  1. सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक।दिल की गहराइयों से निकलकर दिल को भिगो देने वाली।
    चारों दोहे अनुपम

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  2. बहुत सुन्दर रचनाएँ , हार्दिक बधाई कविता जी !

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  3. कविता भट्ट को मैं सदा पढ़ती रहती हूँ । बहुत सुन्दर काव्य एवं भाव सौन्दर्य के मुक्तक एक सरस दो हों के लिये बधाई ।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. अतिसुन्दर एवं भावपूर्ण दोहे कविता जी! हार्दिक बधाई आपको!!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. सुंदर भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई कविता जी

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  7. आदरणीया, ज्योत्स्ना जी , अनिता जी , विभा जी , सुनीता जी आप सभी का हार्दिक धन्यवाद।

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  8. बहुत ही सुन्दर काव्य धारा की कुछ लहरे |

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