रविवार, 31 दिसंबर 2017

नई भोर की नई रीत

1-डॉ0 कविता भट्ट  

रात का रोना तो बहुत हो चुका ,
नई भोर की नई रीत लिखें अब।

नहीं ला सकता  है समय बुढ़ापा ,
युगल पृष्ठों पर  हम गीत लिखें अब ।

नहीं हों आँसू  हों नहीं  सिसकियाँ,
प्रेम-शृंगार और प्रीत लिखें अब।

दु:ख- संघर्षों  से हार न माने ,
वही भावाक्षर मन मीत लिखें अब।

समय जिसे  कभी  बुझा  नहीं  पाए

हम वह जिजीविषा पुनीत लिखें अब।

कभी हार न जाना ठोकर खाकर,
पग-पग पर वही उद्गीत लिखें अब।

काल -गति से  कभी बाधित न होंगे
आज कुछ इसके विपरीत लिखें अब।

यही समय हमारा नाम लिखेगा ,
सोपानों पर नई जीत लिखें अब।
-0-[हे0न0ब0गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल),उत्तराखण्ड]
 [ चित्र-रश्मि शर्मा , राँची के सौजन्य से]

7 टिप्‍पणियां:

  1. नववर्ष की हार्दिक बधाई प्रिय कविता जी । सुंदर सृजन ।

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  2. बहुत सुन्दर रचना कविता जी ..नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको !!

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  3. बहुत सुन्दर , प्रेरक प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई कविता जी ..मंगलकामनाएँ !!

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